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Lala Lajpat Rai |
लाला लाजपत राय के जीवन पर निबंध
लाला लाजपतराय का जन्म फिरोजपुर जिले के ढोडिके गांव में 28 जनवरी सन 1865 में हुआ था. इनके पिता राधाकिशन स्कूल में अध्यापक थे और माता का नाम गुलाबी देवी था. लाला लाजपतराय ने अपने पिता से पढने-लिखने का उत्साह पाया.
सन 1882 में जब वे लाहौर कॉलेज में छात्र थे तब वे आर्य समाज में शामिल हो गये. 23 वर्ष की अवस्था में सन 1888 में वे कांग्रेस में शामिल हुए और उन्होंने कांग्रेस का ध्यान जनता की गरीबी और निरक्षरता की ओर दिलाया.
लाला लाजपतराय की आस्था और विश्वास के कारण उन्हें पंजाब केसरी और शेरे पंजाब की उपाधि दी गई. ब्रिटिश सरकार की निर्भय आलोचना करने के कारण उन पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया.
अंग्रेजो ने मई 1907 में लाला जी को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया. कांग्रेस के भीतर और बाहर उन्हें कांग्रेस का योग्य नेता समझा जाता था. भारत का नेतृत्व करने और समर्थन पाने के लिए वे इंग्लैंड और यूरोप कई बार गये.
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लाला जी राजनैतिक गतिविधियों के अलावा सामाजिक सुधार कार्यक्रमों और शिक्षा के प्रसार के लिए भी सक्रिय थे. जनता के उत्थान के लिए वह शिक्षा को अनिवार्य मानते थे. वे ह्रदय से शिक्षा शास्त्री थे.उनका महिलाओ की समस्याओ को देखने का दृष्टिकोण प्रगतिशील था.
सन 1896 में उत्तर भारत में भीषण अकाल के समय जनता को राहत पहुँचाने के कार्य में वह सबसे आगे थे. इसी प्रकार पंजाब में भूकम्प पीडितो को राहत पहुँचाने और उनकी सहायता में अग्रणी रहे.
राहत कार्य के दौरान इन्होने ‘सर्वेन्ट्स ऑफ़ पीपुल सोसाइटी’ की स्थापना की जिसके सदस्य देशभक्त थे और जिसका ध्येय जनसेवा था.
लाला लाजपतराय ने कई पुस्तके लिखी इनमे शामिल है- ”ए हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया, महाराज अशोक, वैदिक ट्रैक्ट और अनहैप्पी इंडिया”. इन्होने कई पत्रिकाओ की स्थापना और संपादन भी किया. देशवासियों के लिए उनका योगदान, त्याग और बलिदान चिरस्मरणीय था.
लाला लाजपतराय ने 30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन का बहिष्कार करने वाली जनता का शांतिपूर्ण ढंग से नेतृत्व किया. लाठियों के प्रहार के फलस्वरूप लाला जी को गंभीर चोंटे आई और 16 नवम्बर 1929 को रात में उनकी दशा ख़राब होने से प्रातः उनकी मृत्यु हो गयी.
ऐसे महापुरुष को हमारा सत-सत नमन.
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